बांके बिहारी और उनकी मीठी शरारत

 

बरसाने के पास वृंदावन का वह नज़ारा, जहां भगवान श्रीकृष्ण का नटखट रूप बांके बिहारी के नाम से विख्यात है। मंदिर के आंगन में भक्तों की भीड़ लगी रहती है, और बिहारी जी के नटखट स्वभाव की कहानियां हर कोने में सुनाई देती हैं।

एक बार की बात है, वृंदावन के पंडित जी ने ठान लिया कि वह भगवान बिहारी जी को उनके नटखट स्वभाव के लिए चुनौती देंगे। पंडित जी ने सोचा, "मैं तो रोज़-रोज़ ठाकुर जी को चढ़ावा चढ़ाता हूं, लेकिन लगता है वह मेरी परवाह ही नहीं करते। चलो, आज इन्हें थोड़ा व्यस्त करते हैं।"

पंडित जी ने बिहारी जी के भोग में मक्खन और मिश्री का कटोरा रखा और कहा, "ठाकुर जी, अगर आप सचमुच में नटखट हैं, तो इस कटोरे से मक्खन खुद खाकर दिखाइए। वरना मैं समझूंगा कि आपकी शरारतें बस कहानियों तक ही सीमित हैं।"

बिहारी जी मुस्कुरा रहे थे। जैसे ही पंडित जी मंदिर के द्वार पर पहुंचे, उन्हें जोर की छींक गई। उन्होंने मुड़कर देखा, तो क्या पाया? मक्खन का कटोरा खाली था, और कटोरे के पास मक्खन के छोटे-छोटे निशान!

पंडित जी हंस पड़े, "अरे बिहारी जी, आप तो सच में नटखट निकले!"

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। उसी रात, पंडित जी के सपने में बिहारी जी आए और बोले, "पंडित जी, मक्खन बहुत स्वादिष्ट था, लेकिन अगली बार थोड़ा और मिश्री डालना। मिठास कम थी!"

अगले दिन पंडित जी ने केवल मक्खन में मिश्री का अनुपात बढ़ाया, बल्कि मंदिर के सभी भक्तों को यह कहानी सुनाई। लोग हंसते-हंसते लोटपोट हो गए और बिहारी जी की नटखटता की तारीफ करने लगे।

आज भी वृंदावन में यह कहानी सुनाई जाती है, और लोग बिहारी जी को मक्खन का भोग चढ़ाते वक्त मुस्कुराते हुए कहते हैं, "ठाकुर जी, मिश्री सही मात्रा में है, अब चुपके से खा लीजिए!"

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