राधा और कृष्ण की खट्टी-मीठी नोकझोंक




बरसाने का वह मनमोहक दिन, जब राधा रानी अपनी सखियों के साथ फूलों की माला बनाने में व्यस्त थीं। उनके मन में एक ही ख्याल था—आज कृष्ण से मज़ा चखाना है। उधर नंदगांव में कृष्ण भी अपने मित्रों के साथ एक नई शरारत की योजना बना रहे थे।

कृष्ण ने अपने मित्र सुदामा से कहा, "आज राधा रानी को थोड़ा परेशान करते हैं। उनकी माला चुराकर, हम उनकी नटखटता की परीक्षा लेंगे।" सुदामा मान गए, और सारी टोली राधा रानी के बगीचे की ओर चल पड़ी।

राधा रानी ने दूर से ही कृष्ण को आते देख लिया। सखियों से बोलीं, "देखो, ये कन्हैया फिर कोई नई शरारत लेकर आ रहा है। अबकी बार इसे ऐसा पाठ पढ़ाएंगे कि याद रखेगा।"

कृष्ण जैसे ही माला के पास पहुंचे, राधा ने सखियों को इशारा किया। सबने मिलकर झाड़ी के पीछे से कन्हैया और उनकी टोली पर पानी से भरी बाल्टियां उड़ा दीं। भीगे हुए कृष्ण को देख राधा हंसते हुए बोलीं, "कन्हैया, ये बरसाना है, नंदगांव नहीं। यहां हमारी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता!"

लेकिन कृष्ण कहां हार मानने वाले थे। उन्होंने झट से अपनी बांसुरी निकाली और ऐसी मधुर धुन छेड़ी कि राधा रानी और उनकी सखियां सब मंत्रमुग्ध हो गईं। इस मौके का फायदा उठाकर कृष्ण ने माला उठाई और बोले, "अब ये माला हमारी हुई। राधे, अगर इसे वापस चाहिए, तो गोवर्धन के नीचे आकर लेना पड़ेगा!"

राधा रानी मुस्कुराईं और बोलीं, "ठीक है, कन्हैया। लेकिन याद रखना, अगली बार तुम हमारी बांसुरी लेकर भागने से पहले सौ बार सोचोगे।"

इस तरह उनकी नोकझोंक और शरारतें पूरे बरसाने और वृंदावन में चर्चा का विषय बन गईं। भक्त आज भी यह कहानी सुनकर हंसते हैं और कहते हैं, "राधा-कृष्ण की लीला तो खट्टी-मीठी नोकझोंक से ही भरी है।"

 

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